लिखूंगा तुम्हारी हर चिंता
*लिखूंगा तुम्हारी हर चिंता*
यारों रखना याद मुझे,
अपने दिल की दुआवों में।
भूल न जाना कभी मुझे,
बदलती हुई फिजाओं में।
मैं हूं उस राह का राही,
जिस पर चलना मुश्किल है।
पर क्या बताऊं मैं तुमको,
उस पर चलने को दिल है।
रोज मिलूंगा शाम सबेरे,
लेकर साथ कुछ नयी बात।
कभी कविता कभी कहानी,
कभी नये पत्र संग मुलाकात।
राहों में चलते राही को,
संग ले चलना अपना काम।
चाहे हो वह चिर परिचित,
चाहे हो वह अनजान।
पहले मैंने खुद को बदला,
अब समाज खुद बदल रहा।
जिस राह का मैं राही था,
उस पर कोई कोई चल रहा।
बस इस बड़े समाज में मेरी,
एक छोटी सी हिस्सेदारी है।
इसे निभाऊंगा जीवन भर,
क्योंकि यह मेरी जिम्मेदारी है।
इस समाज ने दिया बहुत कुछ,
इसको जरूर मैं लौटाऊंगा।
परहित, क्षमा, दया संग,
ब्याज सहित चुकाऊंगा।
यह देश और समाज हमारा,
सदा सुखी और बना रहे।
इसका शीश हिमालय सा,
सदा फक्र से तना रहे ।
कभी पड़े जब तुम्हें जरुरत,
तब कर लेना मुझको याद।
खड़ा मिलूंगा राह में तुमको,
करता कविता का शंखनाद।
लिखूंगा तुम्हारी हर चिंता,
लिखूंगा तुम्हारा हर दर्द।
चाहे जितनी भी गर्मी हो,
चाहे मौसम हो एकदम सर्द।
बस देते रहना दुआ मुझे,
कहते रहना परमेश्वर से।
स्थिर कभी न रहे “हरी’,
मिले सभी को एक जैसे।
बीते जीवन के 56 नववर्ष,
दुखद सुखद और संघर्ष।
नहीं शिकायत कोई मेरी,
मिले उत्कर्ष या अपकर्ष।।
– हरी राम यादव
7087815074